Vibhas Awasthi मित्र अभी कलम की प्राथमिकता कुछ अौर है लेकिन अाप की जिज्ञासा को ज्यादा प्रतीक्षा नहीं करा सकता अौर अपने अल्प ज्ञान से संक्षिप्त उत्तर देने की कोशिस करता हूं. ग्राम्सी ने लिखा है, जो कि हम सब जानते हैं, कि हर मनुष्य के अंदर बुद्धिजीवी होने की संभावना होती है क्योंकि सबके पास दिमाग होता है. लेकिन कम लोग ही संभावना को कार्यरूप दे पाते हैं. हर मानव क्रिया श्रम नहीं होता. किसी को गाली देना, अपना सर दीवाल में पटकना, बलात्कार करना.........अादि मानव क्रियायें श्रम की कोटि में नहीं अातीं. सामाजिक उतपादकता के उद्देश्य से तर्कशील क्रिया ही श्रम होा है. कुछ लोगों के सिर पर मार्क्स का भूत इस कदर सवार रहता है कि विषय कोई हो वे लेनिन-माओ-स्टालिन को रटी रटाई गालियां दिने लगते हैं, इसमें दिमाग का इतना ही इस्तेमाल है जितना टीचर के क्लास में अाने पर खडे होने में करते हैं. दिमाग का हर इस्तेमाल बौद्धिक नहीं होता."महत्वाकांक्षा" अौर "अरमान" में कोई मौलिक अंतरविरोध है क्या जो एक दूसरे की लाशो पर ही परवान चढ़ सकती हैं, या फिर ऐसे ही मोदी जी की तर्ज़ पर लफ्फाज़ी के लिए इन शब्दों को उछाल दिया? लेनिन और माओ की अपने आराध्य की आपकी तुलना पर इतना ही कह सकता हूँ कि रूसी अौर चीनी क्रांतियों के बारे में अपने अफवाह्जन्य ज्ञान में कुछ पुस्तक ज्ञान भी शामिल कर लें ऑनलाइन सुविधा है. चीन अौर भारत में 1949 में साक्षरता दर समान था. 1960 में चीन पूर्ण साक्षर हो गया. रूस में पूंजीवाद का नियोजित विकास 1920 में शुरू हुअा अौर 15 साल में पूंजीवादी देशों में, निजी स्वामित्व में 250 साल के पूंजीवाद के विकास की बराबरी करते हुये सोवियत संघ अमेरिका के बराबर आर्थिक शक्ति बन गया. क्रांति के दौरान हुई हिंसा जनता की सेना और शासकसेना में युद्ध की हिंसा थी, सत्ता के लिये अपंने ही स्वजनो के जनसंहार की हिंसा से गुणात्मक रूप से अलग. सत्ता में पूंजीवादी विकारों ने दोनों को ध्वस्त कर दिया. बाकी बाद में.
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