कविता के जंमदिन की कविता में बधाई कैसे न दूं
अमूर्त ज़ज़्बातों को मगर शब्दों में कैसे कसूं
दुवा करता हूं अाज के होने का नई उड़ान का दिन
सुंदर सपनों के नये विहान का दिन
लिखो तुम मुक्तिगान की कविता
खत्म हो जाये दुख-दर्द की अंधेरी सविता
भरो ऐसी उड़ान कि खुद-ब-खुद रास्ता दे दे अासमान
अोझल न हो अांखों मगर धरती का अनमोल जहान. जंमदिन मुबारक.
(ईमिः24.12.2014)
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