यदि लिखना ही पड़ा अगला विदागीत, तो निमित्त कोई और इंसान होगा, वही भी हुआ तो भी अलग, बदला हुआ. उसी तरह जैसे जब दुबारा पार करते हैं कोइ नदी तो वह अलग होती है, बदली हुई. मैं शुरुआत की सोचता हूँ, अंत अलक्ष्य परिणाम की तरह होता है. कई बार अलक्ष्य परिणाम लक्षित उद्देश्य से अधिक सारगर्भित हो जाता है.
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