शुक्रगुजार हूँ तुम्हारी
नफ़रत के लिए
कल ही लिखा था अंतिम अंतिम
विदा गीत
यादों के झरोंखों में
धुंधली पड गयी
आज ही तुम्हारी तस्वीर
गायब हो जायेगी कल-परसों तक
नहीं करेगी नीद खराब अब
बर्षों तक
शुक्रगुजार हूँ तुम्हारी
नफ़रत के लिए
बने रहते यदि वैसे ही तटस्थ
न होता चरितार्थ
अंतिम, अंतिम विदागीत के
शीर्षक का संकल्प
मैं नफ़रत तो नहीं लौटा सकता
लेकिन सहता रहूँगा
तुम्हारे विरुद्ध एक-एक
नाइंसाफी के
अपराधबोध का भार
तुम्हारा प्यार उल्लासित था
नफरत एक चुनौती
[ईमि/०८.०५.२०१३]
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