Thursday, May 2, 2013

अंतिम अंतिम विदा गीत


अंतिम अंतिम विदा गीत
 ईश मिश्र 
अब जब विदा ही हो गयी हो ज़िंदगी से
 सदा के लिए
वैसे तो सदा भी उतना ही अनिश्चित है
जितना कि कभी
लेकिन फिहाल तो चली ही गयी हो न?
यह तो निश्चित है लेकिन स्थिर नहीं
 तो इसे वाक़ई अंतिम विदागीत समझो
जानती ही हो इसके पहले भी लिख चुका हूँ
कई अंतिम विदागीत
हर बार कुछ-न-कुछ बदला
और फिर अगला अंतिम विदागीत लिखना पडा   
तुम्हारा अनुयायी बनकर
कोशिस करता उन उन्मादों, बेचैनियों को
भस्म करने की
लेकिन चली आयी हैं ये साथ
माँ के दूध से चलकर
बचपन की कई और आदतों की तरह
जो चश्मदीद गवाह हैं
 उन हादसों के
जिनके चलते वह हूँ जो हूँ
और जिससे शिकायत तो खैर नहीं ही है
वैसे कोई अंतिम अंतिम विदागीत नहीं होता
उसी तरह जैसे होता नहीं कोई अंतिम सत्य
लेकिन एक खास फर्क है इसमें
यह दिमाग से लिखा गया  है
पहले की तरह दिल से नहीं
वैसे यह भी सच है कि
 अतीत कोइ धूल-कण नहीं
जिसे उड़ा दिया जाये
एक उड़ती कविता में
क्योंकि वह समुच्चय है जिए हुए क्षणों का
अन्तरंग हादसों के संचित कणों का   
 और एक ख़ास बात
जो तुमसे मतलब रखती है
यदि अगला विदागीत लिखना भी पडा
तो अलविदा करने  वाला साथी
कोइ और होगा
 तुम नहीं
नहीं पाँव रखते उसी नदी में दुबारा
अगली बार वह एक अलग नदी होती है
 वही नहीं 
[ईमि/२.०५.२००१३]



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