Sunday, May 26, 2013

लल्लापुराण ८५

चंचल भाई, हिंसा अपने आप में एक समस्या है यह किसी समस्या का समाधान नहीं हो सकती. लेकिन सरकारी हिंसा को कैसी रोका जाए? जब सलवाजुडूम के लोग बलात्कार कर रहे थे, आदिवासियों के गाँव जला रहे थे, हत्याए कर रहे थे तब आपकी आँखों में दो बूँद आंसू आये? क्या हो रहा है जनतांत्रिक आंदोलनों का? जगात्सिंघ्पुर के किसानों ने तो हथियार नहीं उठाया पास्को के लिए जनता के पैसे की बारूद उन पर बरसाई जा रही है, सभी आन्दोलन कारियों को फर्जी मुकदमों में फंसाया जा रहा है. कलिंगनगर के अहिंसक आन्दोलनकारी १६ शहादतें दे चुके हैं. क्यों नहीं आप पानी पार्टी की कार्पोरेटी सरकार से कहते कि  टाटा ही नहीं आदिवासी किस्सान भी इंसान हैं उन्हें भी जीने का हक है. एक अपराधी कांग्रेसी की मौत पर इतने आंसूं बहाने की बजाय कभी आपने यह सवाल उठाया कि आपकी पार्टी रणवीर सेना की तर्ज़ पर सरकारी सेना क्यों तैयार कर रही थी? मैं इस तरह की हिंसक गतिविधियों का विरोध इसलिए करता हूँ की बिना व्यापक जन समर्थन के क्रांतिकारी हिंसा भी प्रतिक्रान्तिकारी परिणाम देती है क्योंकि सरकारी दमन और क्रूर हो जाता है.

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