यह व्यक्ति जिसे साढ़े तीन दशकों से जानता हूँ, अपरिचित लगता है. किसी कौम को गुलाम बनाए रखने का सबसे आजमाया हुआ नुस्खा है: उसको उसके इतिहास और भाषा से बेदखल कर दो. ज्ञान की भाषा हमेशा से शासक वर्गों की भाषा रही है आम जन की भाषा नहीं. ऐतिहासिक कारणों से इंग्लैण्ड और उपनिवेशों में अंगरेजी के चरित्र अलग अलग रहे है. इंग्लैण्ड में अंगरेजी बाज़ार के जरिये आमजन की भाषा बन चुकी थी लेकिन ज्ञान की नहीं. १८८० के दशक में मजदूरों के निरंतर संघर्ष के परिणाम स्वरुप जब १८८० के दशक में निम्न वर्गों के पुरुषों को भी नागरिक मान लिया गया उसके बाद क्रमशः १८९२ और १८९४ में आक्सफोर्ड और कोम्ब्रिज में अंगरेजी को ज्ञान की भाषा की मान्यता मिली. शिक्षा को सार्वभौमिक बनाने और जनचेतना के विकास के लिए जनभाषाओं का विकास अपरिहार्य है. आज़ादी के इतने सालों बाद भी हिन्दी माध्यम के छात्रों को हेय दृष्टि से देखा जाता है. मैं तो हिन्दी माध्यम के विद्यार्थियों को अंगरेजी की किताबें पढने के लिए व्यावहारिक कारणों से प्रोत्साहित करता हूँ क्योंकि हिन्दी में किताबों का बेहद अभाव है. आमजन की भाषा जो हुई.
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