Thursday, May 2, 2013

१८५७ का विकराल किसान विद्रोह


१८५७ का विकराल किसान विद्रोह
हिन्दिस्तान में जन सैलाब का प्रथम आरोह
रख कर हल उठा लिया था हथियार किसानों ने
साथ दिया जिनका सेना के विद्रोही जवानों ने
हिल गया था तख़्त-ए-लन्दन लक्ष्मीबाई की हुंकार से
लक्ष्मी की तेग और तात्यां की तलवार की धार से
जीत लेते  जंग-ए-हिन्दुस्तान किसान और जवान
पहुंचते न अंगरेजी सेवा में गर सिंधिया और निजाम
शहादतें जातीं नहीं बेकार लाती हैं कभी-न-कभी  रंग
तात्यां की प्रेरणा रहेगी सदा किसान-मजदूरों के संग
लड़ेंगे जब मिलकर वे आज़ादी का अगला जंग
शहादतें सत्तावन की दिखाएंगी अपना असली रंग
तात्या टोपे को क्रांतिकारी अभिनन्दन
 सत्तावन के शहीदों को इन्किलाबी सलाम
[ईमि/०३.०५.२०१३] 

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