Saturday, June 11, 2011

खौफ

खौफ
ईश मिश्र

खौफ़जदा लोग हर बात से खौ़फ खाते हैं
होते हैं जो बेख़ौफ 
किसी भी बात से नहीं खाते खौफ
न खुदा से न शैतान से
तलाशते हैं बेखौफ नए रास्ते  
 तय करते हैं  अंतरिक्ष की ऊँचाई
और नापते हैं गहराई पाताल की
काटते हैं जड़ें मजहबी मायाजाल की 

जो नहीं खाते खौफ खुदा का

उन्हें नाखुदाओँ का  खौफ क्या?
मालुम हो जिसे जन्नत की हवाई हक़ीक़त 
उसे वाइज़ों के  दोजख़ का खौफ क्या?

वैसे तो हमें बचपन से ही खौफ़जदा बनाया जाता है
कभी चामुंडा बाबा से तो कभी भेडि़ए से डराया जाता है
कभी इम्तिहान का खौफ होता है
तो कभी घमासान का

कुछ बच्चे कर देते हैं बगावत
खौ़फ की हर की हर चाल से
मज़हबी मायाजाल से
पाक़-ओ-नापाक़ के जंजाल से

 देते हैं चुनौती खौफ की हर सल्तन को
खुदा-ओ-नाखुदा की हर हवाई मन्नत को
बूंजी के भूमंडलवाद को
और मीरज़ाफरो के राज को

ये बच्चे जो किसी बात से नहीं डरते
सबसे और सब पर सवाल करते हैं
नामाकूल हो ग़र जवाब
तो  हर उस जवाब पर सवाल करते हैं 

न डांट से डरते न डंडे का खौफ खाते
बढ़ते रहते हैं गीत गाते हुए मुस्कराते हुए
खत्म हो जाए यदि खौफ भूत और भगवान का
खौफ नहीं होता उन्हे नाखुदाओ के विधान का

2 comments:

  1. Exactly Sir.
    Yeh खौफ hi toh hai.. the necessary evil. I feel it is the bond that binds a set of people together.. the recent example being the manner in which the revolutionised struggle of Baba Ramdev was put off with the help of State Violence and Militarism. It created that sense of Fear that kept people miffed but silent.

    Fear like Religion, is the Opium of the Masses, I believe.

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  2. From childhood we institutionally inculcate a sense of fear from the childhood that becomes a stable sens.

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