Monday, December 21, 2015

फुटनोट 61

Cheshta Saxena जाडे में रजाई से निकलने के मामले में भी न्यूटन के गति के नियम लागू हैं, तुम्हारे मामले में थास्थिति तोड़ने मे बच्चों को स्कूल भेजने की अनवार्यता वाह्यबल काम करती है, मेरे मामले में अधिकतम 5 घंटे सो सकने की मजबूरी. कभी रजाई से निकलने का मन न भी हो तो प्रकृति की पुकार कौन अनसुना कर सकता है?.दिमाग डीफोकस न हो तो कुछ काम हौ जाता है. अगर उठते ही फोसबुक खोल लिया तथा किसी पोस्ट ने तुकबंदी का कमेंट करवा दिया तो सुबह गई. उसे वाल पर, कुछ ग्रुप्स में,ब्लॉग पर शेयर करने तथा वर्ड में सेव करने तथा 2-3 चाय बनाने-पिलाने में. अगर ब्राह्म -मुहूर्त का एकांत अतीतोंमुख हो गया तो सुबह बेतरतीब गड्ड-मड्ड विचारों में बीत गयी. लेकिन ऐसा तभी होता है, (मुझे लगता है ) जब मन काम (लिखना) न करने का बहाना ढूंढ़ रहा होता है. मुझे दुनिया का सबसे मुश्किल काम लगता है, लेकिन आसान काम तो सभी कर लेते हैं, फिर मुझे सोचने-बोलने-पढ़ने-लिखने के अलावा कुछ आता ही नहीं. न लिखने का सबसे वैध बहाना पढ़ना है जो लिखने से आसान काम है. कल बहुत हिल्ला-हवाला के बाद कई दिन से नियोजित लेख लिखने के उद्देश्य से लैपटॉप पूरा चार्ज कर धूप में बैठकर काम करने निकलते समय 39-40 साल पहले, आपातकाल के दौरान पढ़े 2 उपन्यास पलटने के लिए उठा लिया. , 287 शब्द लिखने बाद चाय बनाते समय फारर फ्रॉम मैडिंग क्राउड (थॉमस हार्डी) पलटना शुरू किया कि पूरा पढ़ गया. अब पलटने के लिये बिना कुछ लिये धूप में बैठूंगा. काफी समय बाद कोई प्रिय कृति दुबारा पढ़ने में भी पहली बार जैसा ही मजा आता है. पूंजीवाद के उदय की क्रूरताओं को समझने के लिए कुछ उस समय़ के कथानकों के कुछ उपन्यास पढ़ने की सलाह देता हूं, उसमें यह भी है. तुम्हारी दूसरी बात तो भूल ही गया. तुम्हें कैसे मालुम जाड़े की सुबह बच्चों को स्कूल भेजने की तुम्हारी सजा में उन्हें मजा आता है. हम तो मिडिल स्कूल 7 किमी दूर जाते थे, बिना गैरहाजिरी के क्योंकि स्कूल जाने तथा वापसी की मनोरंजक यात्रा का मोह कभी स्कूल न जाने की इच्छा पर बावी पड़ जाता था. उस दैनिक यात्रा के एक वसंत की याद पर एक कविता लिखा गयी थी एक बार. बच्चों से दोस्ती करके रहो, बहुत मजा आयेगा (या आ रहा होगा). बाल अधिकारों तथा बालबुद्धिमत्ता का सम्मान करते हुए समभाव का आचार अद्भुत आनंद देता है,(अनुभवजन्य) .

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