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आरके लक्ष्मण के कार्टूनों के निश्चित हाव-भाव और बेषभूषा की स्थाई हुलिया वाले आमआदमी के चरित्र की तरह पोंगापंथी, दक्षिणपंथियों के आख्यानों में एक स्थाई हुलिया वाला वामपंथी चरित्र है -- मैला कुर्ता, टूटी चप्पल, हाथ में चारमीनार की डिब्बी, कंधे पर लटकता कपडे़ का झोला और उसमें गांजे की पुड़िया और उसके मुंह में अपनी कोई बेवकूफी की बकवास। वैसे उन्हें मालुम नहीं होता दक्षिणपंथ क्या है बस होते हैं। इस चरित्र का वर्णन सब प्रमथ पुरुष (First person) में यानि निजी अनुभव के आधार पर करते हैं। इस स्थाई चरित्र का प्रथम पुरुष वर्णन के आख्यान कितने पुराने हैं नहीं कह सकता मैं अपने इवि के छात्र दिनों (1970 के दशक) से तो सुनता आ रहा हूं। लेकिन इन 50 सालों में मेरी मुलाकात इस चरित्र से कभी नहीं हुई। इवि छात्रसंघ के 3-4 वामपंथी अध्यक्षों. एक उपाध्यक्ष तथा इवि के प्रोफेसर लाल बहादुर वर्मा समेत सैकड़ों वामपंथियों को जानता हूं, लेकिन इस हुलिया में फिट होने वाला कोई नहीं मिला। मैं तो गरीबी में भी साफ-सुथरे कपड़े पहनता था छठें वेतन आयोग के बाद तो घर में भी फैब इंडिया के कुर्ते पहनता हूं। जेब में पार्कर फाउंटेन पेन रखता हूं, जब सिगरेट पीता था तो हैंड रोल्ड सिगरेट की गोल्डेन वर्जीनिया या ड्रम की तंबाकू रखता था, अच्छी फाउंटेन पेन के अलावा अच्छे बैग का भी मेरा हमेशा संभ्रांत शौक रहा है। मुझे आज तक इस हुलिया का वामपंथी एक भी नहीं मिला जबकि इस चरित्र से टकराकर कर प्रथम पुरुष में उनका वर्णन करने वालों की माने तो हर गली-कूचे में ऐसे सैकड़ों चरित्र होंगे, दुर्भाग्य से 50 सालों में मुझसे कोई नहीं टकराया।
इसीतरह के एक प्रथम पुरुष के आख्यान पर मेरा कमेंट:
यह कोई मौलिक आख्यान नहीं है इस तरह की स्टीरियोटाइप आख्यान एक जमाने से चला आ रहा है, अंधभक्त नया भजन भी नहीं रटता अपने जनविरोधी पुरुखों की फैलाई अफवाह ही दोहराता रहता है। सांप्रदायिक मानसिकता के सवर्ण (विवादिक वर्ण संबद्धता वाले कायस्थों समेत) बाहुल्य इस ग्रुप को वामपंथ से कोई खतरा नहीं है लेकिन कई फुट्टहिल लोग जिन्हें लगता है जीवन में कोई काम नहीं है या किसी रचनाचत्मक काम में दिमाग नहीं लगता, बात-बेबात वामपंथ वामपंथ अभुआते रहते हैं। वामपंथ एक विचार है, सत्ता का भय होता है, विचार का आतंक।
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