Friday, September 18, 2020

नया कृषि कानून 1

 1995 में विश्वबैंक ने शिक्षा और कृषि को व्यापारिक माल और सेवा के रूप में गैट्स में शामिल कर, तीसरी दुनिया के देशों पर समाज को भौतिक और बौद्धिक खुराक के मूलभूत श्रोत, दोनों क्षेत्रों को साम्राज्यवादी भूमंडलीय पूंजी के हवाले करने का दबाव डालना शुरू कर दिया था। भूमंडलीय पूंजी की वफादारी में संघ प्रतिष्ठान से जरा सी उन्नीस, कांग्रेसी नेतृत्व की मनमोहन सरकार लोकलिहाज तथा वामपंथी दबाव में, गैट्स पर अंगूठा लगाने में हिल्ला हवाला करती रही। भूमंडलीय पूंजी के सरगना अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने मनमोहन सरकार की दक्षता पर सवाल खड़े किए तथा भूमंडलीय पूंजी के भोंपू, कॉरपोरेटी मीडिया तथा संघप्रतिष्ठान की मदद से उसके छुटभइए अनशनकारी दलाल अन्ना हजारे ने उस पर लोकपाली हमला बोल दिया। 2014 में भूमंडलीय पूंजी की ज्यादा प्रामाणिक दलाल दलाल, भाजपा के नेतृत्व में एनडीए सरकार ने सत्ता में आने के बाद 2015 में गैट्स पर अंगूठा लगा दिया तथा पिछवाड़े (बैक डोर) से दोनों क्षेत्रों को अध्यादेशों और कार्यनीतिक फैसलों से भूमंडलीय पूंजी के हवाले करना शुरू कर दिया था। आवाम पर गुलामी थोपने की साम्राज्यवादी मंसूबो को कामयाब बनाने के मकसद से देश में अशिक्षा और कुशिक्षा के प्रसार की नई (राष्ट्रीय) शिक्षा नीति को मंत्रिमंडल की मंजूरी मिल चुकी है उसे संसद की मंजूरी से कानून बनाने की औपचारिकता अभी बाकी है। सड़क पर किसानों के व्यापक तथा संसद में लचर विपक्ष के क्षीण विरोध के बावजूद, बहुमत का इस्तेमाल करते हुए सरकार ने किसानों तथा छोटे-मझोले कृषि-उद्यमियों और व्यापारियों की तबाही वाले कृषि कानून पारित कर कृषि क्षेत्र को साम्राज्यवादी भूमंडलीय पूंजी के हवाले कर दिया। उदारवादी पूंजीवाद में धनपशुओं की लूट में राज्य तथाकथित तटस्थ भाव से बाजार का अदृश्य हाथ था, नवउदारवादी पूंजीवाद में राज्य धनपशुओं की लूट में दृश्य सहभागी है। राज्य की सक्रिय सहभागिता के बिना धनपशुओं की कंपनियां किसानों और आदिवासियों के जल-जंगल-जमीन पर कब्जा नहीं जमा सकतीं। मैं लगातार रेखांकित करता रहा हूं कि इतिहास के उदारवादी, औपनिवेशिक साम्राज्यवाद और आज के नवउदारवादी, वित्तीय साम्राज्यवाद में मूलभूत फर्क यह है कि अब किसी लॉर्ड क्लाइव की जरूरत नहीं है, सारे सिराज्जुद्दौला भी मीर जाफर बन गए हैं।

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