Friday, September 11, 2020

फुटनोट 245(ट्रोल)

 फेसबुक पर सक्रिय कई अंधभक्त ऐसे हैं जो किसी भी पोस्ट पर कम्युनिस्टों का हिसाब-किताब मांगने लगते हैं। फैज की एक नज्म पर एक सज्जन कम्युनिस्टों के कुकृत्यों का वर्णन करते हुए 1925 से उनके कामों का हिसाब मांगने लगे। उस पर --


लगता है आपका काम विषय पर बात करने के लिए भजन गाते गाते कुंद दिमाग को खोलने की बजाय समय बर्बाद करने की ट्रोलगीरी करना है। यदि ट्रोलगीरी में जितना समय खर्च करते हैं कुछ पढ़ते-लिखते तो जानते कि कॉमिंटर्न के फैसले के तहत ताशकंत में गठन के समय से ही कम्युनिस्ट पार्टी ने डव्लूपीपी (वर्कर्स एंड पीजेंट्स पार्टी) नामक जनसंगठन के परचम के तले कांग्रेस के साथ स्वतंत्रता आंदोलन में हिस्सेदारी करने का निर्णय लिया था। जिससे अंग्रेज हुक्मरान आतंकित हो गए और पार्टी से संबंधित हर किसी को बंद कर मुकदमा शुरू किया जिसे कानपुर षड्यंत्र केस के नाम से जाना जाता है। तथा 1929 में 2 ब्रिटिश कॉमरेडों समेत सभी ज्ञात कम्युनिस्ट नेताओं को बंद कर उनपर मेरठ षड्यंत्र मामले के नाम से मशहूर मुकदमा चलाया। संसोधनवाद के मुद्दे पर 1964 में पार्टी में पहला विभाजन हुआ। वैसे पोस्ट फैज की जिस नज्म पर है उसके विषय से इसका कोई संबंध नहीं दिखता। पंजीरी खाकर रटा भजन गाकर विषयांतर से विमर्श विकृत करने की बजाय कुछ पढ़िए-लिखिए और विषय पर दिमाग लगाने की कोशिस करिए। कम्युनिस्टों के कुकर्मों पर अलग थ्रेड पर विमर्श करों। सद्बुद्धि की शुकामनाएं। सादर।

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