कोरोना संक्रमण मुझे लगता है, मानव इतिहास की सर्वाधिक व्यापक महामारी है। यह मानव निर्मित है या प्राकृतिक, इस पर बहस की गुंजाइश नहीं है। अमेरिका और चीन एक दूसरे पर आरोप लगा रहे हैं तथा भारत में सोसल मीडिया पर भी बहुत से भक्त वामपंथी भजन गाने के चक्कर में चीन पर संक्रमण फैलाने का आरोप लगा रहे हैं। ज्यादातर वैज्ञानिक शोध इसे, अब तक अनजान, प्राकृतिक जीवाणु बता रहे हैं तथा इसकी रोकथाम के तरीकों/औषधियों के अन्वेषण में लगे हैं। इसके उद्गम देश चीन ने वैज्ञानिक तरीको एवं उपलब्ध स्वास्थ्य सुविधाओं के इस्तेमाल तथा रोकथाम के तरीकों से काफी हद तक नियंत्रित कर लिया। मध्य चीन स्थित हुबेई प्रांत के वुहान शहर और आस-पास को छोड़कर कहीं लाक डाउन नहीं किया गया। राजधानी बेजिंग समेत. तमाम अन्य शहरों में आर्थिक-सामाजिक गतिविधियां सामान्य बनी हुई हैं। चीन से सटे वियतनाम ने शीघ्र ही कोरोना संक्रमण पर विजय पा लिया। क्यूबा ने शुरू में ही इसे फैलने से रोक कर अन्य लैटिन अमेरिकी देशों की मदद में लग गया। इसकी आर्थिक नाकेबंदी में अमेरिका के सहयोगी देशों, इटली और इंगलैंड की इस महामारी से निपटने में मदद की। कल की ‘इंडिपेंड’ अखबार की खबर के अनुसार. न्यूजीलैंड की प्रधानमंत्री जसिंदा आर्डेंट की सरकार की सूझबूझ और सकारात्मक जनपक्षीय नीतियों के चलते, वहां इस महामारी के प्रकोप पर पूरी तरह नियंत्रण प्राप्त कर लिया गया। सभी सामाजिक-आर्थिक गतिविधियों से सारे प्रतिबंध हटा लिए गए हैं। जर्मनी मेंसरकार ने किसी को बेरोजगार नहीं होने दिया। सभी नियोक्ताओं को कर्मचारियों को नौकरी से न निकालने का निर्देश दिया और 60-87% वेतन का आश्वासन। अमेरिका ने बेरोजगार होने दिया लेकिन सभी को जीवन यापन का बेरोजगारी भत्ता दे रही है। कनाडा, दक्षिण कोरिया, जापान. कोस्टारिका आदि देशों ने महामारी से बेरोजगार होने वाले परिवारों को समुचित पैकेज दिया।
हमारी सरकार ने 29 मार्च को वाहवाही लूटने के लिए घोषणा कर दी कि सभी कर्मचारियों को लॉकडाउन काल का पूरा वेतन मिलेगा, लेकिन सुप्रीम कोर्ट में बात से पलट गई और कहा क् मामला मालिक और मजदूर के बीच है। लाकडाउन से बेरोजगार होने वालवे 10 करोड़ लोगों में लगभग 2 करोड़ नियमितत कर्मचारी हैं। जब महामारी की अधिसूचना का संज्ञान लेकर रोकथाम करनी थी तो हमारी सरकार, सैकड़ों करोड़ खर्चकर ट्रंप का स्वागकत करने में व्यस्त थी। महामारी के कुप्रबंधन से अपनी जनता की नाराजगी झेलते ट्रंप को नस्लविरोधी आंदोलन के बारे में प्रतिकूल टिप्पड़ियों के चलते बंकर में छिपना पड़ रहा है। उससे निपटने के बाद हिंदू-मुस्लिम नरेटिव से सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की निरंतरता के लिए दी पुलिस की मदद से दिल्ली में दंगे कराने में लग गयी और फिर विधायकों के खरीदफरोख्त से मध्य़प्रदेश की सरकार गिराने में। अब महामारी की आड़ में बचे-खुचे सार्वजनिक प्रतिष्ठानों को धनपशुओं को नालाम करने, तबलीग के प्रायोजित सरकज से महामारी को हिंदू-मुसलमान नरेटिव में फिट करने, राजनैतिक विरोधियों को बंद करने तथा 150 करोड़ के खर्च से एलईडी लगाकर गृहमंत्री का बिहार चुनाव-भाषण कराने में लगी है। मजदूर भूख से मर रहे हैं और कोरोना से।
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