मेरे तो कई पाकिस्तानी दोस्त हैं, यहां के बहुत से चिरकुटों से बहुत अच्छे। कभी पाकिस्तान जाना हुआ तो अगर उन्हें पता चल जाए कि आप हिंदुस्तानी हैं तो होटल वाला, पान-सिगरेट वाला आटो वाला पैसा नहीं लेगा। लेकिन बताना पड़ेगा क्योंकि शकल-सूरत से पता नहीं चलता। मैं 1983 में लाहौर गया तो एक लगभग मेरी ही उम्र का (27-28 साल का) आजमगढ़ी रेलवे गार्ड मिल गया। रेलवे क्वार्टर में अकेले रहता था उसने अपने साथ रुकने का इतना अधितक आग्रह किया कि रुकना ही पड़ा। बाजार बिल्कुल चांदनी चौक सी लगी। होटल में मजीद के साथ कआने गया तो वेटर को पता चला कि हिंदुस्तानी हूं तो बोला मेरा ऑर्डर वह अपने मन से लाएगा। पैसा लेने से मना कर दिया, मैनेजर से बात किया तो बोला हिंदुस्तानी मेहमानों से पैसा नहींलेता। वही जवाब सिगरेट की दुकान पर और ऑटो वाले से मिला। रावी में बहुत कम पानी था। कई बातें अगली बार के लिए छोड़ आया था अगली बार फिर कभी नहीं आया। शैतान सरहद नहीं जानता, इधर भी हो सकता है, उधर भी।
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