विचारधारा के रूप में मर्दवाद का इतिहास उतना ही पुराना है जितना वर्ग-विभाजन के साथ शुरू हुई सभ्यता तथा संबद्ध असमानताओं की विचारधाराओं का। अन्य विचारधाराओं की ही तरह मर्दवाद भी एक मिथ्या चेतना जै जिसे नित्य प्रति के विमर्श, रीति-रिवाजों, प्रतीकों तथा कर्मठृकर्मकांडों द्वारा निर्मित-पुनर्निर्मित एवं पुष्ट किया जाता है। म्रदवाद को पुष्ट करने के सबसे अधिक प्रभावशाली औजार विवाह एवं सेक्सुअल्टी से जुड़े कर्म-कांड, प्रतीक, रीति-रिवाज, मान्यताएं एवं वर्जनाएं हैं। कन्यादान जन्म के रीतिरिवाजों से शुरू स्त्री के उपभोक्ताकरण की प्रक्रिया का अगम सोपान है।
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