आत्मावलोकन और आत्मालोचना बौद्धिक विकास की अनिवार्य शर्त है इसलिए अनवरत आत्मावलोकन-आत्मालोचना करता रहता हूं। मानव सभ्यता के विकास में भाषा का अन्वेषण एक क्रांतिकारी अन्वेषण था तथा भाषा की तमीज व्यक्तित्व के चारित्रिक गुणों का अहम निरूपक है। इसीलिए शब्दों के चुनाव में सदा सजग रहना चाहिए। मूकों की अपनी भाषा तथा भाषा सौंदर्य और तमीज होती है। खुद दशकों से (बाभन) विवेकशील इंसान बनने के निरंतर अभ्यास में लगा हूं इसीलिए औरों को भी इंसान बनानेकी कोशिस करता हूं, इसमें आत्ममुग्धता की कोई बात नहीं है। मैं हॉस्टल का वार्डन था तथा नए नए प्रयोग कर रहा था। मेरे पहले वाले वार्डन ने कहा कि गधों को रगड़ रगड़ कर घोड़ा नहीं बनाया जा सकता। मुझे लगा कि इसे बच्चों में अपना प्रतिबिंब तो नहीं दिख रहा?हमारे बच्चे गधे नहीं, समझदार इंसान होते हैं, उन्हें समुचित मार्गदर्शन की जरूरत होती है। मैंने उससे कहा कि मेरा काम है रगड़ना, क्या पता बन ही जाए! उनमें से ज्यादातर जिम्मेदारी के पदों पर हैं और प्यार से याद करते हैं। क्षमा प्रार्थी होने की कोई जरूरत नहीं है, मैं असुविधाजनक सवाल पूछने वाले छात्रों को ज्यादा प्यार से याद रखता हूं। विमर्श में शब्दों के चुनाव पर ध्यान देना चाहिए, सादर।
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