Thursday, June 11, 2020

नवब्राह्मणवाद 38 (लालू)

लालू के साथ इस मायने में अन्याय हुआ कि उनसे बड़े बड़े भ्रष्टाचारी खुले घूम रहे हैं और वे जेल में हैं। लोकप्रियता काबिलियत की परख नहीं है, मोदी जितनी लोकप्रियता लालू की कभी नहीं रही। आपसे सहमत हूं कि लालू प्रसाद के लिए ललुआ संबोधन का प्रयोग सवर्ण कुंठा और पूर्वाग्रहों की देन है। जहां तक बिहार में दलितों के सिर उठाकर चलने की या उन्हें आवाज देने की बात है तो इसका श्रेय बिहार के क्रांतिकारी आंदोलनों को जाता है। लालू ने उसकी फसल काटी। 1989 भारत के इतिहास में निर्णायक बिंदु हो सकता था। पहली बार कई महत्वपूर्ण प्रदेशों में सत्ता किसान पृष्ठभूमि के लोगों/शक्तियों के हाथ में आयी। केंद्र में वीपी सिंह सरकार ने मंडल कमीशन की अनुशंसा लागूकर समाजिक न्याय के अभियान को बल दिया। लालू, मुलायम, देवेगौड़ा, देवीलाल जैसों के पास यदि सैद्धांतिक/वैचारिक अंतर्दृष्टि (vision) होती तो देश का इतिहास अलग होता और ये इतिहास निर्माता होते। लेकिन ये ब्राह्मणवादी सामंतवाद से लड़ने की बजाय अपने पूर्ववर्ती शासकों के पदचिन्हों पर चलते हुए अनायास संपत्ति जोड़ने और नवब्राह्मणवादी सामंती जीवन शैली में फंस कर मौका गंवा दिए। यही बात मायावती पर भी लागू होती है। ऱणवीर सेना के ज्यादातर दलित जनसंहार लालू-राबड़ी शासनकाल में ही हुए।9लालू
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