यहां सिर्फ मंत्र की बात करूंगा, पीड़ा बहुत हद तक मनःस्थिति होती है तथा मंत्र का मनोवैज्ञानिक प्रभाव होता है। मैंने ऊपर कबूल किया कि बिना मंत्र जाने मैं मंत्र की प्रैक्टिस करता था। मार्क्स की सामाजिक-राजनैतिक व्यवस्था में सामाजिक चेतना भिन्न होगी। सुख महज जरूरत की इच्छाओं की संतुष्टि में नहीं है, सुख अपनी प्रकृति को व्यवहार का अंग बनाने में है। happiness lies not not in eat, drink and be merry, but in realization of one's happiness. जैसे बढ़िया क्लास हो जाना, एक शिक्षक का सुख है। लेकिन भोजन की गुणवत्ता कुक तो बताएगा नहीं, वह तो खाने वाला ही बताएगा। भोजन की तारीफ सुनकर कुक को सुख मिलता है। वर्गविहीन समाज ( या उसके सपने) में समानता काअद्भुत सुख सभी को एक समान सुलभ होगा। सब बराबर होंगे कोई कम या ज्यादा बराबर नहीं। भविष्य की परिकल्पना, एक सपना ही तो होता है, सपना सुंदर ही होना चाहिए और पाश ने कहा है, सबसे खतरनाक है सपनों का मर जाना। बाकी फिर..
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