जातिवाद का एक जवाब, इंकिलाब जिंदाबाद। गरीब-मजदूर का एक सलाम, जय भीम लाल सलाम। जाति के विनाश के बिना क्रांति नहीं, क्रांति के बिना जाति का विनाश नहीं। मैंने कई जगह दो बातें रेखांकित किया है -- 1. भारत में शासक जातियां ही शासक वर्ग भी रही हैं। 2. हिंदू जाति-व्यवस्था (ब्राह्मणवाद) और पूंजीवाद में एक समानता यह है कि दोनों पिरीमिडीय व्यवस्थाएं हैं जिनमें सबसे नीचे वाले को छोड़कर सबको अपने से नीचे देखने के लिए कोई मिल जाता है। जनता के विरुद्ध दोनों एकजुट हैं, इसके विरुद्ध जनता की भी एकजुटता की जरूरत है। अंबेडकर ने 'जाति का विनाश' में ऐतिहाासिक दृष्टांत से दिखाया है कि आर्थिक-राजनैतिक से पहले सामाजिक क्रांतियां हुई हैं। लेकिन अब अलग-अलग चरणों में सामाजिक और राजनैतिक क्रांतियों का वक्त नहीं है, दोनों के समन्यव तथा द्वंद्वात्मक एकता की जरूरत है। सामाजिक चेतना के जनवादीकरण (वर्गचेतना के प्रसार) के रास्ते में जातिवाद (ब्राह्मणवाद) तथा जवाबी, अस्मितावादी जातिवाद (नवब्राह्मणवाद) दोनों ही बड़े-बड़े गतिरोधक हैं तथा एक दूसरे के विरोधी नहीं बल्कि पूरक हैं। जन्म के आधार पर व्यक्त्तित्व का मूल्यांकन ब्राह्मणवाद का मूलमंत्र है, नवब्राह्मणवाद का भी।
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment