अक्सर कुछ लोग धर्मोंमाद-विरोध को सूडो या फर्जी सेकुलरिज्म के खिताब से नवाजतेरहते हैं, बताते नहीं कि जिन्यून या सही सेकुलरिज्म क्या है? क्या इस मंच पर हम सेकुलरिज्म पर ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में कोई सार्थक विमर्श कर सकते हैं? इसके पहले मैंने 'वाम पंथ' पर एक सार्थक विमर्श का प्रयास किया था, अन्यान्य कारणों से प्रयास असफल रहा।
मैं इस तथ्य से विमर्श की शुरुआत करता हूं कि राष्ट्रवाद की ही तरह धर्मनिरपेक्षता (सेकुलरिज्म) एक आधुनिक विचारधारा है। आधुनिक विचारधारा की जड़ें प्रचीनता में भले ढूंढ़ी जासकें लेकिन उनका निर्माण सुदूर अतीत में नहीं हो सकता। विचार या वैचारिक संरचना (विचारधारा) वस्तु या भौतिक परिस्थिति के परिणाम है। यूरोप में ऐतिहासिक प्रक्रिया के रूप में धर्मशास्त्रीय शिकंजे से कला, संस्कृति, राजनीति और दर्शन की मुक्ति की शुरुआत नवजागरण काल में हो चुकी थी तथा प्रबोधन काल तक सत्ता की वैधता के श्रोत के रूप में ईश्वर तथा भौतिक दुनिया की व्याख्या के श्रोत के रूप में धर्मशास्त्र वितुप्त हो गए। यानि ऐतिहासिक प्रक्रिया के रूप में धर्मनिरपेक्षता (सेकुलरिज्म) का उदय नवजागरण काल तक हो चुका था। इस (सेकुलरिज्म) शब्द का ईजाद 1851 में अंग्रेजी चिंतक जैकब होलीओक (Holyoake) ने किया। एक दर्शन के रूप में धर्मनिरपेक्षता (सेकुलरिज्म) धर्म का नाम लिए बिना जीवन की व्याख्या भौतिक सिद्धांतों पर करती है।
नोट: विषयांतर से बचने की गुजारिश।
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