जो जब तक घटित नहीं होता, यूटोपिया लगता है। हमारे बचपन में किसी दलित का ब्राह्मण के बराबर बैठना या किसी स्त्री का पुरुषो की बराबरी की बात यूटोपिया थी।
प्रकृति ( द्वंद्वात्मक भौतिकवाद) का नियम है कि जिसका भी अस्तित्व है उसका अंत निश्चित है, पूंजीवाद अपवाद नहीं है।
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