प्रो. क,
मेरी हकीकत तो बहुत लोगों को पता ही है, आपकी भी हकीकत कुछ लोगों को पता है। सबकी हकीकत कुछ या बहुत लोगों को पता होती है। आपकी प्रतिक्रिया में मैं भी अप्रिय बात कह गया, मुझे पता नहीं आपको मुझसे क्या दुश्मनी है कि अनायास वैमनस्य पैदा करते हैं। मैं आप जैसे ज्ञानी, फुल प्रोफेसर से तर्क करने के काबिल कहां हूं।( मैं तो एसोसिएट से ही रिटायर हो गया) आपने मेरी मूर्खता का राज सार्वजनिक कर ही दिया है। हमारा संवाद अनायास अप्रिय हो रहा है। आपसे अपनी मूर्खता की सनद के अलावा कुछ ज्ञान भी नहीं प्राप्त हो रहा है। अशोक के सांप्रदायिकता के जनक होने की आपके सिद्धांत से सहमत नहीं हूं। किसी भी अवधारणा को उसके ऐतिहासिक संदर्भ में ही समझा जा सकता है। सांप्रदायिकता (और धर्मनिरपेक्षता भी) एक आधुनिक राजनैतिक विचारधारा है जो धर्म के नाम पर उंमादी लामबंदी करता है। खैर अनायास कटुता की बजाय आइए संवाद बंद करते हैं, मैं आपके किसी निराधार आक्षेप का जवाब नहीं दूंगा।
मेरी हकीकत तो बहुत लोगों को पता ही है, आपकी भी हकीकत कुछ लोगों को पता है। सबकी हकीकत कुछ या बहुत लोगों को पता होती है। आपकी प्रतिक्रिया में मैं भी अप्रिय बात कह गया, मुझे पता नहीं आपको मुझसे क्या दुश्मनी है कि अनायास वैमनस्य पैदा करते हैं। मैं आप जैसे ज्ञानी, फुल प्रोफेसर से तर्क करने के काबिल कहां हूं।( मैं तो एसोसिएट से ही रिटायर हो गया) आपने मेरी मूर्खता का राज सार्वजनिक कर ही दिया है। हमारा संवाद अनायास अप्रिय हो रहा है। आपसे अपनी मूर्खता की सनद के अलावा कुछ ज्ञान भी नहीं प्राप्त हो रहा है। अशोक के सांप्रदायिकता के जनक होने की आपके सिद्धांत से सहमत नहीं हूं। किसी भी अवधारणा को उसके ऐतिहासिक संदर्भ में ही समझा जा सकता है। सांप्रदायिकता (और धर्मनिरपेक्षता भी) एक आधुनिक राजनैतिक विचारधारा है जो धर्म के नाम पर उंमादी लामबंदी करता है। खैर अनायास कटुता की बजाय आइए संवाद बंद करते हैं, मैं आपके किसी निराधार आक्षेप का जवाब नहीं दूंगा।
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