Thursday, October 3, 2019

एक लिखी जाने वाली लम्बी कविता की शुरुआत:

एक लिखी जाने वाली लम्बी कविता की शुरुआत:

हमारा गांव बहुत धनी तो नहीं मगर खुशहाल था
गुर्ब-ओ-जवार में अमन-ओ-चैन की मिशाल था
न था कोई धन्नासेठ न ही कोई फटेहाल था
रंज़िश-ओ-नफरत का वहां बिल्कुल अकाल था
भाईचारा-ओ-हमदर्दी में अपना गांव बस कमाल था
बावजूद-ए-नाइत्तेफाकी किसी को न कोई मलाल था
लग गयी मेर गांव को नज़र-ए-सियायत
जल गयी सामासिक संस्कृति की विरासत
बता नहीं सकता अब अपने गांव की बात
वहां भी हुआ इस बार भीषण रक्तपात
उन्मादी लामबंदी की फिरकापरस्त उत्पात
सदियों का इतिहास हुवा पल में बर्बाद
होता था ईद-ओ-दिवाली का मुबारकबाद
होने लगा वहां मजहबी ज़िंदा-मुर्दाबाद
खेलते थे जो कल तक सदा एक साथ
हो गयी है दूरी उनमें आज बेमियाद
(ईमिः04.10.2014)

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