यहां मार्क्सवाद की आलोचना नहीं की जाती, गाली दी जाती है। आलोचना तो तब होती जब उसकी किसी अवधारणा या मान्यता के विभिन्न विंदुओं की तथ्य-तर्कों के आधार पर समीक्षा की जाए। समाजवाद का इतिहास 150 साल पुराना है (पेरिस कम्यून, 1871) तथा धरती पर स्वर्ग उतारने के स्वप्न के साथ शुरू पूंजीवाद का इतिहास उससे दो सौ साल अधिक पुराना है, सब भोंपू लेकर चिल्लाते रहते हैं कि समाजवाद फेल हो गया, कोई नहीं पूछता कि पूंजीवाद क्यों असफल रहा? क्रांति और निर्माण लंबी प्रतिक्रिया है, पूंजीपति सर्वसाधन संपन्न है, राज्य मशानरी उसकी चाकर है, सर्वहारा के पास श्रमशक्ति के सिवा कुछ नहीं। यह श्रमशक्ति तब तक महज संख्याबल, भीड़ बनी रहती है जब तक वर्गचेतना से लैस अपने आपको जनबल में नहीं तब्दील करती। संख्याबल के जनबल की यात्रा की एक शर्त है, जाति-धर्म की मिथ्या चेतना से मोहभंग।
रूस तथा चीन में पूंजीवाद की पुनर्स्थापना समाजवाद की असफलता नहीं है, पूंजीवाद के विरुद्ध समाजवादी विद्रोह और विकल्प के चरणों की समाप्ति है। समाजवाद पूंजीवाद का विकल्प है तथा पूंजी भूमंडलीय है इसलिए इसका विकल्प भी भूमंडलीय ही होगा। बाकी फिर........
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