जेएनयू में मुफ्त की पढ़ाई तो कठमुल्लों का शगूफा है, सारे विश्वविद्यालय सरकारी खर्च पर चलते थे तथा हम जैसे गरीब लड़के भी पढ़ लेते थे। हमारे समय इवि में जेएनयू से कम फीस और हॉस्टल फीस थी। 10-12 रु. यूनिवर्सिटी फीस थी और 5-7 रुपया रूमरेंट। प्रवेश-शुल्क 100-125 रुपए या कुछ ऐसे ही। मतलब साल भर की फीस अधितम 400 रुपया थी और उसीके एक साल बाद जेएनयू में 498 रुपया जमाकरके दाखिला लिया। 1976 में आपाताकाल की परिस्थितिवश जेएनयू पहुंच जाना मेरे जीवनका एक सुखद संयोग रहा है। कैंपस का मिजाज देखकर सुखद विस्मय हुआ था। जेएनयू के पढ़े जितने शिक्षक बने या जिस भी पेशे में हैं उनमें प्रायः अपने साथके लोगों में बेहतर हैं। अपवाद नियम की पुष्टि ही करते हैं। मेरा आंकलन छात्रों की राय के आधार पर है। शिक्षक के छात्रों के मूल्यांकन को प्रामाणिक मानता हूं। एकसमान शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी बुनियादी, मानवीय जरूरतों की सार्वजनिक, सार्वभौमिक तथा एकसमान आपूर्ति काउत्तरदायित्व राज्य का होना चाहिए। आज सी मंहगी शिक्षा होती तो हमारे जैसे कितने लोग उच्च-शिक्षा के अवसर से वंचित रह जाते।
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