Saturday, October 19, 2019

शिक्षा और ज्ञान 251 (करवाचौथ)

एक ग्रुप में मैंने करवाचौथ को मर्दवादी (जेंडर्ड) उत्सव लिख दिया तो लोग बोल पड़े स्त्रियों द्वारा श्रद्धा से, खुशी खुशी व्रत रखती हैं, जिसकी बुराई करना गलत है। किसी की आस्था को हमें आहत नहीं करना चाहिए। मैंने घाव पर विवेक का मरहम लगाने की सलाह दी। खैर उन्हें तो नहीं कहा यहां कहना चाहिए। यह स्वेच्छा, श्रद्धा, खुशी-खुशी की गुलामी की 'स्वाभाविकता' एक सांस्कृतिक निर्मिति है जो विचारधारा के रूप में मर्दवाद का निर्माण-पुनर्निर्माण करती है। मर्दवाद (जेंडर) कोई जीववैज्ञानिक प्रवृत्ति नहीं है, न ही यह पीढ़ी-दर-पीढ़ी चला आरहा पाई के मान जैसा विचार है। मर्दवाद विचार नहीं विचारधारा है जिसे हम नित्य प्रति अपने दानंदिन व्यवहार तथा विमर्श में निर्मित-पुष्ट-पुनर्निर्मित करते हैं। विचारधारा पीड़ित तथा उत्पीड़क दोनों को प्रभावित करती है। यदि किसी बेटी को बेटा कहकर साबाशी दूं तो न केवल मैं उसे साबाशी देता हूं बेटा कहे जाने को वह भी साबाशी की ही तरह लेती है। अनजाने में ही सही, हम दोनों मर्दवाद की विचारधारा को मजबूत कर कर हे होते हैं। विचारधारा एक मिथ्या चेतना है जो एक खास कॉन्स्ट्रक्ट को स्वाभाविक तथा अंतिम सत्य के रूप में प्रतिस्थापित करती है। बाकी फिर कभी।

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