बिहार छात्र आंदोलन के समय तक जेपी राजनैतिक रूप से लगभग अप्रासंगिक से हो गए थे। दलविहान जनतंत्र के अमूर्त, अपरिभाषित सिद्धांत के समय से ही जेपी राजनैतिक दिगभ्रम की स्थिति में थे। बिहार छात्र आंदोलन को नेता की जरूरत थी और जेपी ने संपूर्ण क्रांति का वायवी नारा दिया। इसी दिगभ्रम में आरएसएस की अपनी पुरानी समझ भूल कर जेपी ने उसे संपूर्ण क्रांति के अभियान में निकट सहयोगी बनाया तथा सांप्रदायिकता का परोक्ष समर्थन किया। 1977 में जनता-प्रयोग ने इसे राजनैतिक रूप से सम्मानजनक बना दिया।
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