Dinesh Pratap Rao Dixit सफाई नहीं दे रहे, बता रहे हैं कि इसमें अटल की तारीफ नहीं है। मैंने अटल जैसे भंड़ैती की भाषा वाले शगूफेबाज की तारीफ नहीं की है, सिर्फ यही कहा कि मोदी उनका वीभत्स संस्करण है। डरपोक तो मैं कभी नहीं रहा, जो भगवान तथा भूत के डर से मुक्त हो जाए उसे किसी का डर नहीं लगता। और भी से आपका क्या मतलब? हमारे समय में इलाहाबाद में सही के गुंडे होते थे और सही की बंदूकें, किसी की आंख दिखाने की औकात नहीं होती थी। आपने अपनी पता नहीं किस कुंठा में मेरा इतना समय नष्ट करवा दिया। 3 साल हॉस्टल का वार्डन था 25 साल से चली आ रही गुंडागर्दी 6 महीने में नष्ट कर दिया और सोचकर आया था कि जिस दिन पुलिस बुलाना पड़ेगा, अपना सामान बांधूंगा और यह किसी को रस्टीकेसन का सम्मान नहीं दूंगा। 3 साल हॉस्टल में पुलिस का प्रवेश निषेध था। दिवि छात्रसंघ के बजरंगी उपाध्यक्ष समेत एक एक गुंडों को चहेंट चंहेट भगाया था। हॉस्टल के गुंडे शरीफ बन गए और गिरोहबाजी खत्म हो गयी। गुंडे और कुत्ते कायर होते हैं, झुंड में शेर हो जाते हैं तथा अकेले में पत्थर उठाने के नाटक से दुम दबाकर भाग जाते हैं। जिन-जिन बच्चों की जितनी ऐसी-तैसी कि वे मेरे उतने ही एहसानमंद तथा श्रद्धालु हैं। हमारे बच्चे न तो अपराधी हैं न गधे, वे आपकी नीयक जन लेते हैं। सब ठीक ठीक जगहों पर हैं। 10 दिन पहले तत्कालीन गिरोहों के 14 लड़के किसी की शादी में आए थे, सब मिलने आ गए। एक (नैनीताल में आयकर अधिकारी) ने पूछा "सर एक बात पूछूं बुरा नहीं मानेंगे? हम 50-60 लोग ह़ॉकी-रॉड से मार-पीट कर रहे होते थे और आप आधी रात को हमारे बीच बिना पुलिस के घुस आते थे?" मैंने कह तुम्हारी सिट्टी-पिट्टी क्यों गुम हो जाती थी? दूसरे (बीयसयफ का कमाडेंट) ने कहा, "हां सर बुरा न माने, आपकी आवाज सुनते ही हमारी फट जाती थी"। मैंने कहा "सत्ता का भय होता है, ईमानदारी का आतंक", जिसे बाद में संपादित कर "विचारों" का आतंक कर दिया। आप चुंगी पर ही देखिए विचारों से आतंकित हो सारे अजरंगी-बजरंगी बौखलाकर आंव-बांव बकने लगते थे और अंत में डर कर कायरों ने चुपके से ग्रुप से निकाल दिया। जो लिखता हूं उसे ध्यान से पढ़कर प्रतिक्रिया दें। सादर।
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