कॉ चंदू की शहादत को लाल सलाम। बिहार भवन पर प्रदर्शन के दौरान बिहार के नए सामंत लालू यादव के साले साधू यादव ने छत से सिपाही की राइफल छीन कर गोली चलाया था और यह उल्लू का पट्ठा (लालू) सहाबुद्दीन को निर्दोष बता रहा था। लालू-मुलायम-माया को इतिहास बनाने का मौका मिला था लेकिन राजनैतिक अंतर्दृष्टि की कमी और स्व के न्यायबोध पर स्वार्थबोध की प्राथमिकता के चलते तीनों ने इतिहास बनाने और ऐतिहासिक व्यक्तित्व बनने का अवसर सामंती अहंकार, भाई-भतीजों को लूट तथा अपराधियों को अपराध की छूट में नष्ट कर दिया। लालू जनप्रतिनिध्व से अयोग्य ठहराए जाने के बाद, पार्टी के किसी वरिष्ठ नेता को मुख्यमंत्री बनाकर महान बन जाते लेकिन विश्वास तथा आत्मविश्वास की कमी से वह ऐसा न कर सके बल्कि पूजा-पाठ और बाबा रामदेव की शरण में चले गए। बच्चों का भी अहित कर गए, मीसा डॉ है वह अपनी रोजी-रोटी का इंतजाम कर लेती, क्या जरूरत थी दिल्ली में फार्महाउस की?
खैर यह तो एक बात हुई। दूसरी बात लालू ने बिहार में भ्रष्टाचार की नींव नहीं डाली, शुरुआत पहले मुख्यमंत्र श्रीकृष्ण सिंहा के समय से ही हो गयी थी।लालू ने बस उसे रोका नहीं और वह चलती रही है। बिहार में ही नहीं जभी जगह लगभग यही स्थिति रही है। डॉ जगन्नाथ (मिश्र, साइलेंट) ने गांधी मैदान बेच डाला था लेकिन भ्रष्टाचार के प्रतीक के रूप में वे जगन्नथवा नहीं बने, किसी घोटाले में नाम आने पर भ्रष्टाचार का प्रतीक ललुआ बन गया। चारा घोटाले की शुरुआत मिश्र ने की लेकिन वे बाइज्जत बरी हो गए और यादव को 28 साल की सजा, यानि 70 साल के आदमी की जेल में मौत की सजा। यह लालू को राजनैतिक रूप से खत्म करने की साजिश है, किसी व्यक्ति को जीने के हक से वंचित करना अमानवीय है।
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