मित्र, बात तथ्य-तर्कों से की जाती है, लाखों साल पहले दोपाये फल-फूल कंदमूल खाकर जीते थे, उन्हें भाषा का ज्ञान नहीं था, वह हिंदू संस्कृति थी क्या? आप चूंकि विज्ञान के विद्यार्थी रहे हैं इतिहासबोध की आपकी अवैज्ञानिकता समझ में आ सकती है, ऊपर बाभन से इंसान बनने में असमर्थ जिस दोपाये की बात की है वह प्रोफेसर है, वह भी जेयनयू में, जहां की हवा में तर्क-विवेक विखरे हैं, लेकिन बंद दिममाग में कैसे घुसे? हिंदू शब्द का ईजाद सिंधु घाटी के बासिंदों की भौगोलिक पहचान के लिए 10वीं शताब्दी में अरबों ने किया। वैदिक काल 300-1000 ईशापूर्व है। ऋगवैदिक आर्य सप्तसिंधु (सिंधु-पंजाब की 5 नदियों - तथा विलोप हो चुकी सरस्वती नदियों का क्षेत्र) में रहते थे। मारुत, इंद्र आदि प्राकृतिक देवताओं की पूजा करते थे। ब्रह्मा-विष्णु-महेश नदारत हैं। बौद्ध साहित्य तथा कौटिल्य के लेखों में इनका कोई जिक्र नहीं है। जब विष्णु ही नगीं थे तो वर्णाश्रम को बचाने-बढ़ाने तथा धरती को रक्तरंजित करने के लिए अवतार कहां से लेते? बाबा साहब अंबेडकर ने गीता पर अपने अधूरे लेख का सटीक शीर्षक दिया है. 'प्रतिक्रांति की बौद्धिक पुष्टि: कृष्ण और उनकी गीता'। ब्राह्मणवादी रूढियों और कर्मकांडों के विरुद्ध बौद्ध की बौद्धिक क्रांति के बाद की ब्राह्मणवादी प्रतिक्रांति। रामायण, महाभारत पहली सदी ईशापूर्व और दूसरी ईश्वीय सदी के बीच ब्राह्मणवाद को दैवीय बताने के लिए रचे गए। गीता में कृष्ण का यही सिद्धांत है।
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