सारे दोपाए बाभन से इंसान नहीं बन पाते, उसके लिए नैतिक साहस की जरूरत होती है। घुमंतू कबीले की उस 8 साल की मासूम बच्ची को तो मालुम भी नहीं था कि वह हिंदू है कि मुसलमान। उसे तो बलात्कार जैसी सभ्य समाज की बातें भी मालुम नहीं थी। कल किसी अंग्रेजी वेब मैगजीन के लिए एक एक छोटे-छोट पीस इस पर और उन्नाव की हैवानियत पर लिखना था। सुबह दो बार आशिफा की फेसबुक पर तस्वीर देखा आंखों में उमड़ते सैलाब को तो रोक लिया लेकिन कुछ धाराएं फूट ही पड़ीं। ऐसा नहीं है कि यह नरभक्षियों द्वारा किसी छोटी-सी प्यारी सी बच्ची को चीड़-फाड़ कर कतल करने की पहली घटना है, लेकिन यह शायद वीभत्सतम है।उससे भी वीभत्सतम है, भाजपा के मंत्रियों समेत हिंदुत्व राष्ट्रवादियों द्वारा इन नरभक्षियों की पक्षधरता। प्रधानमंत्री ने इसे सभ्य समाज के लिए शर्मसार बताया। ऐसा लगा कि शहर का सबसे बड़ा गुंडा गुंडाविरोधी सभा की सदारत कर रहा है। बलात्कार और बर्बरता आदिम समाजों की नहीं तथाकथित सभ्य समाजों कि विशिष्ट समस्याएं हैं। असली गुनहगार वह विचारधारा है जो लोगों के दिमागों धर्मोंमादी जहर भरती है कि वे भूल जाते हैं वे इंसान हैं। असली गुनहगार मजहबी नफरत की विचारधारा, मौजूदा संदर्भ में हिंदुत्व मार्का राष्ट्रवाद। हिंदुत्व राष्ट्रवाद पिछले दरवाजे से मनुवाद (वर्णाश्रमवाद) की पिछले दरवाजे से पुनर्स्थापना का प्रयास है। आरक्षण को अप्रासंगिक बनाने के लिए विश्वविद्यालयों के 70-30 के बहाने निजीकरण की घिनौनी शाजिस रच रहे हैं। हमें कृतिम अंतर्विरोधों में फंसाकर बेखौफ मुल्क नीलाम कर रहे हैं। फंसना हमारा चुनाव नहीं मजबूरी है। हमारी संवेदना बर्बर नहीं हुई है। हर मोर्चे पर लड़ना है। बौद्धिक संसाधनों पर एकाधिकार के चलते हजार साल ब्राह्मणवादी वर्चस्व बना रहा। अब शिक्षा अमीर वर्गों के लिए आरक्षित होगी तथा मैं बार-बार दोहराता हूं, शासक जातियां ही शासक वर्ग रही हैं। सामाजिक न्याय तथा आर्थिक न्याय के अलग अलग संघर्षों का समय नहीं है, संयुक्त हमला है, प्रतिरोध भी संयुक्त होना चाहिए। लेकिन जर्जर ब्राह्मणवाद की पुरस्थापना अब असंभव है। शंबूकों ने तीरंदाजी भी सीख लिया है, एकलव्यों ने बिना अंगूठे के तीर चलाने के साथ, कलम चलाना भी। चलो लिखता हूं, न लिखने से तो कुछ नहीं होगा। इन नर पशुओं की आंखों में एक बच्ची के साथ ऐसी बर्बरता के समय अपनी बेटी-नतिनी की तस्वीर नहीं आती होगी?
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