Wednesday, April 18, 2018

शिक्षा और ज्ञान 152 (बाभन से इंसान)

Amit Dwivedi बजरंगी, लंपट के साथ मूर्ख भी होता है, एक बार जो भजन रट लेता है, तोते की तरह पंजीरी खाकर भजन गाता रहता है। कितनी बार साबित हो चुका और छप चुका है कि भारत तेरे टुकड़े होगे के नारे बजरंगी घुसपैठियों ने लगाए थे जिसे मनस्मृति इरानी के सहायकों ने छी न्यूज से मिलीभगत कर नारे डॉक्टर्ड किए थे। लेकिन भक्त तो बंद दिमाग दोपाया होता है, शाखा की परेड चिंतनशक्ति कुंद कर देती है, रही सही कसर वर्दी की परेड पूरी कर देती है। दुनिया कहीं पहुंच जाए पंडीजी गुंगवामहे ही रटते रहेंगे। जनेऊ तोड़ना प्रतीकात्मक शुरुआत है बाभन से इंसान बनने की, यानि जन्म की जीववैज्ञानिक दुर्घटना की अस्मिता की प्रवृत्तियों से ऊपर उठकर विवेकसम्मत अस्मिता अर्जित करने की लंबी, कष्टकारी, आंतरिक संघर्ष की प्रक्रिया की। आपकी गुंगवामहे प्रवृत्ति की तोतागीरी तो इसी से पता चलती है कि लाल सलाम की मैंने कोई बात ही नहीं की और आपके सिर पर लालसलाम का भूत सवार हो गया।

आपकी दूसरी बात:
"इंसान बनना सरल है ब्राह्मण बनके जीवन जीना कठिन। तभी जनेऊ लोग तोड़ देते है और उन्मुक्त हो जाते हैं।"

इंसान बनना इतना सरल होता तो धरती रक्तपातविहीन सुख-सम्मान; अमन-चैन का ग्रह बन जाता, आप भी पढ़-लिख कर डिग्री और नौकरी के साथ-साथ बाभन से इंसान बन गए होते। ब्राह्मण बनकर जीने में क्या कठिनाई है? दिमाग बंद कर वही सब दुहराते रहिए जो बाप दादा करते आ रहे हैं! दिमाग का इस्तेमाल मनुष्य को पशुकुल से अलग करता है। सादर शुभकामनाएं।

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