फासीवाद बुर्जुआ तानाशाही का एक स्वरूप है। संवैधानिक बुर्जुआ तानाशाही कथनी-करनी के दोगलेपन को छिपाती है, फासीवादी तानाशाही दोगलेपन को आदर्श बताती है। संवैधानिक तानाशाही में दमन का सरकारी तंत्र ही होता है, फासीवादी तानाशाही में उसके साथ फासीवादी गिरोहों का तंत्र भी जुड़ जाता है। कोई संसदीय व्यवस्था की चाकरी की हिमायत नहीं कर रहा है, न परिवर्तन से पीछे हटने की (मेरे लिए तो वैसे भी बहुत देर हो चुकी है), यह महज वस्तुस्थिति का आंकलन है, क्रांति के लिए क्रांतिकारी परिस्थिति अनिवार्य शर्त है। इस मुल्क (अन्य मुल्कों के भी) सभी तरह के वाम, 1970 के दशक के अंतिम दिनों से शुरू हुई दक्षिणपंथी प्रतिक्रियावादी लहर के विरुद्ध वे परिस्थितियां तैयार करने यानि सामाजिक चेतना के जनवादीकरण यानि वर्गचेतना के प्रसार में कामयाब नहीं रहे। कारणो पर विमर्श हो सकता है। सामाजिक चेतना का जनवादीकरण आज की सबसे बड़ी जरूरत है, क्योंकि मार्क्स ने कहा है, मजदूर अपनी मुक्ति की लड़ाई खुद लड़ेगा।
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