Tuesday, April 24, 2018

शिक्षा और ज्ञान 155 (शाखा प्रकरण)

एक मित्र ने 1963 में गणतंत्र दिवस में आरयसयस की भागीदारी के सवाल पर मुझे टैग किया, उस पर कमेंट:

मैें पैदा तो हो गया था 1963 में लेकिन आरयसयस के बारे में नहीं जानता था, 8 साल का गांव का ब्राह्मण बालक था। शाखा नेटवर्क तब तक गांव में नहीं पहुंचा था। 1966-67 में पहली बार जनसंघ का नाम सुना जब गांव-गांव के सारे साधू-सवाधू दिल्ली गोरक्षा का जुलूस निकालने गए थे। 1969 में एक अर्ध स्वयंसेवक के रूप में (अर्ध इसलिए कि मैं गणवेश नहीं पहनता था, बेहूदे वेश का कोई मतलब नहीं समझ आता था), गोलवल्कर को सुनने बिनियाबाग गया। उनकी बातें मुझे अपने गांव के पुरोहिती कर्म के पेशेवर, छांगुर पंडित की बातों की तरह बे-सिरपैर की लगी थी। जहां तक शाखा और बौद्धिकों में सुनी बातों की याद है तो तिरंगे को राष्ट्रद्रोही झंडा बताया जाता था और नेहरू गांधी को खलनायक। गोडसे का भी महिमामंडन होता था। उस समय का जौनपुर के प्रचारक वीरेश्वरजी ने बताया था कि औरंगजेब ने इतने हिंदू मारे कि 100 मन जनेऊ जलाया गया। मैंने अंदाजन हिसाब लगाया तो 100 मन का मतलब लगभग 4000 किलो यानि 4 कुंतल। अगर एक जनेऊ (मैं तब तक तोड़ चुका था) 5 ग्राम का होता हो तो करोड़ों जनेऊधारी कत्ल किए गए और जनेऊ 12-15% लोग ही पहनते थे। तो उत्तर भारत की पूरी आबादी कितने सौ करोड़ रही होगी? इस सवाल से वह झल्ला गये क्योंकि शाखा के बौद्धिकों में सवाल पूछने की परंपरा नहीं थी। शायद वही वीरेश्वर द्विवेदी आजकल विहिप के राष्ट्रीय सचिव हैं।

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