Monday, April 9, 2018

नए विकल्प गढ़ने होंगे

नए विकल्प गढ़ने होंगे
माननी होगी
अभिव्यक्ति के खतरे उठाने की मुक्तिबोध की सलाह
तोड़ने होंगे
जन्म की जीववैज्ञानिक दुर्घटना की अस्मिता के पूर्वाग्रह-दुराग्रह
लाल ही होता है
सबकी धमनियों का रक्त
जिसकी चार ही प्रजातियां हैं
जिसका बंटवारा
कुदरती इत्तेफाक है, जीववैज्ञानिक प्रवृत्ति नहीं
जिस दिन हम समझ जाएंगे
यह साश्वत सत्य
कि स्त्री-पुरुष; हिंदू-मुसलमान आदि के पहले
हम एक समग्र इंसान हैं
सब-के-सब इंसानी बिरादर
ये जो महलों दुमहलों के वासी हैं
कातिल और लुटेरे सत्यानाशी हैं
बांटते हैं मेहनतकश को
ऊंच-नीच में, मजहब-जाति में
देते हैं मुर्दा पूर्वजों का हवाला
फूंकते हैं कान में नफरत का मंत्र
डालते इंसानी बिरादरी में फूट
भूलकर अपने मेहनत की लूट
करता मेहनतकश एक-दूजे का रक्तपात
जारी रहती है लूट
लूट के माल की तस्करी की
है धनपशुओं की पूरी छूट
जिस दिन समझेगा इंसान यह राज
करेगा इंसानी बिरादरों की एका आबाद
करेगा धर्मोंमादी राष्ट्रवाद का पर्दाफाश
और धनपशुओं के निजाम को नेश्तनाबूद
गढ़ेगा नए विकल्प यह नया इंसान
होंगे सब स्त्री-पुरुष एकसमान
नए विकल्प की नई कविता होगी
कयानात में होगी महज मुहब्बत
नफरत की जगह कब्र में होगी
गगन में एक नई लालिमा होगी
धरती पर एक नया आसमां होगा
(बहुत दिन से कलम आवारगी भूला हुआा था, मित्र अर्जुन की विकल्पहीनता के कमेंट पर तुकबंदी में यह कमेंट लिखा गया।)
(ईमि: 10.04.2018)

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