हम लोगों ने 1970 के दशक को मुक्ति का दशक घोषित कर दिया था लेकिन परिस्थितियां बदल गयीं, जिस संविधान को बदलकर हम सोच रहे थे जनवादी संविधान की संविधान सभा की बात कर रहे थे लेकिन इतिहास की गाड़ी ने खतरनाक यू टर्न ले लिया। अब जब संविधान पर फासीवादी हमला हो रहा है, तो हमारी मजबूरी है हम उसी संविधान की रक्षा की बात कर रहे हैं, यह हमारा चुनाव नहीं है। 60-70 के दशक की क्रांतिकारी परिस्थियां फिर कब आएंगी कहा नहीं जा सकता। संवैधानिक बुर्जुआ तानाशाही की तुलना में फासीवादी तानाशाही से लड़ना ज्यादा मुश्किल है। 1848 की यूरोपीय क्रांतिकारी लहर में मार्क्स को पूरे महाद्वीप क्रांतिकारी संभावनाएं, दिखीं और मैनिफेस्टों में आक्रामक टोन में आक्रामक वर्ग संघर्ष का आह्वान किया। लेकिन एटींथ ब्रुमेयर में क्रांति की अगली परिस्थितियों के बारे में अनिश्चित दिखते हैं। फर्स्ट इंटेनेशनल के संबोधन में भाषा के लचीलेपन की सफाई में एंगेल्स को मार्क्स कार्क्रम की व्यापक स्वीकार्यता की बात करते हैं तथा प्रिफेस में विकास के चरण और सामाजिक चेतना के स्वरूप की बात करते हैं। आज हमारी जिम्मेदारी सामाजिक चेतना के जनवादीकरण यनि लोगों की मिथ्या चेतना को वर्गचेतना से प्रतिस्थापित करना है। सांस्कृतिक मोर्चे पर ब्राह्मणवाद तथा नवब्राह्मणवाद इसके रास्ते के दो खतरनाक स्पीडब्रकर्स है.। फासीवाद के विरुद्ध फिलहाल नवब्राह्मण जहां तक साथ आते हैं, ठीक है।
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