Tuesday, April 10, 2018

ऐतिहासिक भौतिकवाद (भाग 1 तथा 2)



ऐतिहासिक भौतिकवाद
ईश मिश्र
भाग १
भूमिका के बदले
1
ऐतिहासिक भौतिकवाद दर्शन नहीं विज्ञान है
तथ्यों-तर्कों पर दुनिया को समझने का ज्ञान है
इतिहास की गतिविज्ञान का द्वंदात्मक विधान है
सत्य वही जिसका है ठोस भौतिक प्रमाण
बाकी सब है अमूर्त पाखण्डहवाई आख्यान
करता है इतिहास की व्याख्या भौतिक आधार पर
न कि किसी अमूर्त, अदृश्य, दार्शनिक विचार पर
यथार्थ वही जो प्रमाणित हो व्यवहार में
न कि भगवान की मर्जी या आध्यात्मिक विचार में 
आर्थिक ढाँचे में खोजता इतिहास का गतिविज्ञान
राजा-रानी की कहानियां हैं इतिहास के सतही आख्यान
कर उत्पादन आजीविका का जानवरों से अलग हुआ इंसान
श्रम बन गया आत्मा जीवन की और उद्पादन का आधार
बना हुआ है श्रम तभी से इतहास की निरंतरता का तार
समझना है अगर समाज की संरचना का सार
समझना पडेगा राजनैतिक अर्थशास्त्र के विचार
बनता-बिगड़ता है उत्पादन के संबंधों से मानव इतिहास 
अंतिम कारण और संचालक है जिसका समाज का आर्थिक विकास  
कुंजी है उत्पादन पद्धति और आधारभूत संरचना
निर्धारित होती जिससे राजनैतिक-वैधानिक अधिरचना
होता है जब उत्पादन शक्तियों का उत्पादन संबंधों से टकराव
होता है उत्पादन संबंधों में मूलभूत बदलाव
बदलते हैं जब उत्पादन पद्धति और विनिमय नियम
बदल जाते हैं रीति-रिवाजों के उपक्रम   
होता है समाज में नया परस्पर-विरोधी वर्ग विभाजन
बनता है वह वर्ग शासक कब्जे में होते जिसके उत्पादन साधन
 फिर शुरू होता है एक नए वर्ग संघर्ष का इतिहास
कसता शासक सिकंजा वर्चस्व का शोषित करता तोड़ने का प्रयास  
ऐतिहासिक भौतिकवाद करता है दुनिया की व्याख्या आर्थिक अर्थों में
सत्यापित दम दिखता है इसके अकाट्य तर्कों में
कहता है यह अर्थ ही है इतिहास का मूल-मंत्र
खडा होता है जिसपर धर्म-क़ानून सी अधिरचानाओं का तंत्र
उत्पादन संबंधों से तय होता है सामाजिक चेतना का स्वरुप
सामाजिक सम्बन्ध खुद बनते हैं उत्पादन-विकास के स्तर के अनुरूप
अर्थप्रणाली ही है देश-काल की गति का मूल-कारण
यही करता है ऐतिहासिक युग के चरित्र का निर्धारण
१८९२ में एंगेल्स ने लिखी एक बहुत पतली सी किताब
विषय और शीर्षक था उसकावैज्ञानिक या वायवी समाजवाद
साफ़ साफ़ लिखा है उसमें कि क्या है ऐतिहासिक भौतिकवाद
उत्पादन पद्धति है कुंजी इतिहास की बगैर अपवाद
राजाओं, रानी-रखैलों और लड़ाइयों का इतिहास है बकवास
 इतिहास की असली कुंजी है,श्रम के साधनों का क्रमिक विकास
(२९.०८.२०१२)
नहीं है अमूर्त विचारों में भ्रमण ऐतिहासिक भौतिकवाद
है यह समाज को समझने और बदलने का प्रामाणिक संवाद
देता नहीं है यह किसी काल्पनिक अतीत का विवरण
करता है यह देखी-सुनी और प्रमाणित बातों का ही चित्रण
 (२९.०८.२०१२)
१८५९ में मार्क्स ने लिखा पूंजीवाद के नियमों पर एक कथन
ऐतिहासिक भौतिकवाद का सार है जिसका प्राक्कथन
शीर्षक है राजनैतिक अर्थशास्त्र की आलोचना में एक योगदान
माना जाता है जिसे ३ खण्डों में लिखी पूंजी का पूर्वानुमान 
 (२९.०८.२०१२)
श्रम ही है जीवन की आत्मा
नहीं है और कोई दूजा उसका परमात्मा
इतिहास की निरंतरता की कड़ी श्रम है
भूत और भगवान छलावा और भ्रम है
मनुष्य में होता है एक खास नैसर्गिक गुण
श्रम के औजारों को निखारने में होता वह निपुण
जैसे-जैसे विकसित होते गए श्रम के साधन
बढती रही श्रम-शक्ति की उद्पादकता और सामाजिक उत्पदान
जीने की जरूरतों के उत्पादन के सिलसिले के दौरान
अनचाहे-अनजाने एक सामाजिक रिश्ता बनता है इंसानों के दरम्यान
कहे जाते हैं ये उत्पादन के सामाजिक सम्बन्ध
तय करते हैं जो मनुष्यों के आपसी अनुबंध
ये रिश्ते नहीं हैं अंजाम किसी भगवान की भक्ति के
बनते-बदलते हैं ये विकास से उद्पादन शक्ति के
चेतना का स्तर होता इन्ही रिश्तों के अनुरूप
सचेत मानव प्रयास बदलता जिसका स्वरुप
सच है वस्तु और विचार की द्वंद्वात्मक एकता
वस्तु की है लेकिन इसमें प्राथमिकता
नहीं हुई न्यूटन के सिद्धांतों से सेबों के गिरने की शुरुआत
सेबों के गिरने से आई न्यूटन के मन में कारण खोजने की बात
मनुष्य की चेतना से नहीं बनतीं भौतिक स्थितियां
उलटे भौतिक हालात तय करते हैं मानव-चेतना की परिस्थितियाँ
मनाव चेतना है उसके ऐतिहासिक हालात का परिणाम
बदली चेतना है बदले हालात का अंजाम
अपने आप बदलते नहीं इतिहास के हालात
इंसान करता इसके लिए सजग, अनवरत प्रयास
बदलाव है इतिहास का द्वंदात्मक नियम
माझी है जिसका मनुष्य का सामाजिक उपक्रम
क्रमिक परिवर्तन होता रहता है लगातार मात्रात्मक रूप में
क्रांतिकारी परिपक्वता से होता है प्रगट गुणात्मक रूप में
नष्ट होना है उन सबको जिनका भी है वजूद
पूंजीवाद भी नहीं रहेगा सदा मौजूद
होगा उदित इसके अवशेषों से एक नया समाज
न होगा कोई राजा न ही कोई राज
 (३०.०८.२०१२)
भाग२
आदिम साम्यवाद
इन्सान ने जब दो पैरो पर चलना शुरू किया
चलना छोड़ अगली टांगो से उन्हें चलाना शुरू किया
कहने का मतलब उन्हें पैर से हाथ बना लिया
तब अपने को पशु-समूह से अलग कर लिया
बनाया हाथों को औजार और श्रम का साधन
करने लगा अपनी आजीविका का उत्पादन
पडी इस तरह मानव विकास की बुनियाद
बनती जा रही हैं जिसपर मंजिलें बेमियाद
ज़िंदा रहने के लिये फ़ल-फूल-कंद्मूल खाते थे,
पीकर सोते से पानी पीपल तले सो जाते थे
भाषा ज्ञान न था
संवाद का भान न था
एकाकी जीवन बिताते थे
पशुवतध्वनि से काम चलाते थे
आत्म-संरक्षण ही एकामात्र नैसर्गिक प्रवृत्ति थी
बाकी अन्तर्निहित पर सुप्त थीं
रहने लगे समूहों मे बचने के लिये जानवरो से
कहने-सुनने लगे धवनियोंसंकेतोंइशारों से
होता जब भी शेर-चीते का डर
तना पकड चढ जाते पेड पर
होती रही इस तरह मेल-जोल की पुनरावृत्ति
जागी इंसान की एक और प्रवृत्ति
रहता नहीं अब सिर्फ आत्म-प्रेम के भाव में
हमदर्दी भी आ गयी अब उसके स्वभाव में
करते-करते ध्वनि-संकेतों से संवाद
किया उसने ध्वनि से शब्द ईजाद
शब्दों के मेल से हुई भाषा की शुरुआत
है मानव इतिहास में यह अति क्रांतिकारी बात
और भी इन्द्रियाँ जगने लगीं
विवेक से पहले अंतरात्मा जगी
धीरे-धीरे दिमाग तेज चलने लगा
जीने का तौर तरीका बदलने लगा
वे पत्थरो से हथियार और औजार बनाने लगे
बीन कर ही नहींतोड्कर भी फल खाने लगे
शुरू किया छोटे-मोटे जानवरो का शिकार
होते गये जैसे-जैसे परिमार्जित हथियार
चिंगारी सी निकली हुआ जब पत्थरों का घर्षण
हुआ इस तरह अग्नि का क्रांतिकारी अन्वेषण
जीवन की धारा ही बदल गयी
आग जिलाने की कला जब आ गयी.
हुआ जब तीर-धनुष का आविष्कार
करने लगा वह बड़े जानवरो का शिकार
मांसाहार से दिमाग तेजी से बढने लगा
इन्सान नई--नई खोज करने लगा
स्त्री-पुरुषों का मेल होता था परिस्थिति के संयोग से
मुक्त थे लेकिन वे मोह-माया के योग से
हुई धीरे धीरे घर बनाने की चलन
कुनबो मे होने लगा इंशानों का रहन-सहन
बनाने लगे बर्तन बुनने लगे कपडे वे
शुरू किया सम्पत्ति का आगाज पशु-धन से
आया वजूद मे इतिहास का पहला श्रम-विभाजन
मर्द करेगा शिकारऔरत देखेगी घर-बार और पशुधन
हुआ जब लोहे का आगाज़ और पैदा होने लगा अनाज
खेती बन गई जीविका का
नीव पड गयी जिस पर आगे चलकर बनते रहे वर्ग समाज

जब भी होता है नये ज्ञान का आगाज
हथियारों की होड़ में फंस जाता समाज
हथियरो का इस्तेमाल होता नही महज शिकार मे
होने लगा उनका इस्तेमाल कुनबो के आपसी जनसंहार मे
लूटते पशुधन और करते कत्ल-ए-आम
जो बच जाते बना लेते उनको गुलाम
शुरू हुआ इस तरह सभ्यता का इतिहास
होता रहा शोषण और लूट की संस्कृति का विकास.
१५.०७.२०११
दास उद्पादन पद्धति


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