1968-69 में पूर्वी उप्र में छात्र आंदोलन के दौरान जौनपुर बस-स्टेसन के चौराहे पर बीयचयू के एक समाजवादी छात्रनेता, रामबचन पांडेय (शायद) ने एक घोर स्त्रीविरोधी नारा दिया था, 'यूपी में बांझराज, दिल्ली में राणराज, उप्पर से कामराज, कैसे अइहै रामराज'। आधुनिक शिक्षा की पहली पीढ़ी के, मर्दवादी-ब्राह्मणवादी परिवेश में पले 13-14 साल के ब्राह्मण बालक की सामाजिक चेतना ऐसी नहीं थी कि बुरा लगता, लेकिन यह नारा बाद तक याद और कचोटता रहा। आज उसका वैकल्पिक नारा होना चाहिए, 'यूपी में लंपटराज, दिल्ली में नरसंहारी राज, उप्पर से नगपुरियावाद (ब्राह्मणवाद), कैसे अइहे रामराज'।
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