कर्म और विचारों की बजाय जन्म की जीववैज्ञानिक दुर्घना के आधार पर व्यक्तित्व का मूल्यांकन ब्राह्मणवाद का मूल मंत्र है, जो जन्म की अस्मिता से ऊपर नहीं उठ पाता वह बाभन से इंसान नहीं बन पाता और आजीवन पंजीरी खाकर भजन गाता रहता है. और मोदी जैसे नरसंहारी का भक्त बन विवेकहीन भक्तिभाव के रोग से आजीवन ग्रसित रहता है.
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment