पहली बात वह मोहम्मद खालिद नहीं, उमर खालिद है. नास्तिक मेरी तरह. मुझे फक्र है कि दोनों ही प्रतिभाशाली उदीयमान इतिहासकार, अनिर्बन और उमर मेरे अजीज दोस्त और आंदोलन के साथी हैं. दोनों के ऊपर एक ही आरोप था. दोनों ही बराबर की एक ही भाषा में फासीवाद के विरुद्ध मुखर हैं लेकिन आप जैसे भक्तों के दिमाग में भरा सांप्रदायिक जहर मुझसे उमर का हिसाब मांगता है अनिर्बन का नहीं. भक्तिभाव असाध्य मानसिक रोग है. बाभन से इंसान बनना मुश्किल तो है नामुमकिन नहीं. नहीं तो पंजीरी खाकर भजन गाते रहिए. वैसे उमर से मिल लीजिए तो थोड़ा बहुत दिमाग खुल जाएगा. और बेचारे-सेचारे आप जैसे भक्त होते हैं.
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