दलित और ओबीसी दोनों तरफ से एक-दूसरे को समझने और साथ आने तथा क्रांतिकारी आंदोलनों को दिशा देने की जरूरत है. पूर्वी उप्र में, जहां मेरा गांव है वहां कुछ यादव बाहुबली दलितों के साथ वैसा ही व्यवहार करते हैं जैसे पहले राजपूत सामंत करते थे. कुछ ओबीसी बुद्धिजीवी दलित-ओबीसी के अंतरविरोध को अतिरंजित करने में लगे हैं तो कुछ ब्राह्मणवाद और साम्राज्यवाद के विरोध की जगह खंडित-मंडित वामपंथ को गालियां देने में सारी ऊर्जा खर्च कर रहे हैं. यह नवब्राह्मणवाद है ,जो ब्राह्मणवाद का पूरक है. जो भी यथास्थिति के विरुद्ध है वह परिभाषा से वामपंथी है. जैसा कि भगत सिंह ने कहा है कि जाति और धर्म के अंतर्विरोधों का एक ही जवाब है, वर्ग चेतना. ब्राह्मणवाद का एक जवाब इंकिलाब जिंदाबाद. पूंजीवाद ने ब्राह्मणवाद से सीखकर कामगरों को इतने खानों में बांट दिया है कि हर किसी को अपने से नीचे देखने को खी-न-कोई मिल जाता है.
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