वामपंथ पर हमले के मामले में गजब की एका है ब्राह्मणवादी संघियों और नवब्राह्मणवादी अस्मितावादियों (प्रमुखतः नवधनाढ्य ओबीसी विद्वानों) में. संगठित वाम अपने ही अकर्मों के चलते वैसे ही हासिए पर चला गया है और असंगठित वाम की हालत असंगठित मजदूरों सी है जो जेयनयू तथा अन्य विश्वविद्यालयों के विचार-विमर्श की संस्कृति पर हमलों जैसे मौकों पर ही सक्रिय होता है. फिर भी सोसल मीडिया पर नवब्राह्मणवादी और ब्राह्मणवादी दोनों ही किस्म के विवेकवाद के दुश्मनों को वामपंथ से ही सबसे बड़ा खतरा है. इन दोनों की इस मिलीभगत का भंडाफोड़ विचार-विमर्श और समाज की सामासिक संस्कृति की रक्षा के लिए जरूरी है. 29 जनवरी को सासाराम जिले के कोचस ब्लॉक के नव्वां गांव के कुर्मी (ओबीसी) जमींदार दो भूमिहीन ओबीसी मजदूरों, विजय शर्मा(लोहार) और सुरेश चौहान (नोनिया) की प्रताड़ना में ऊना में दलितों की प्रताड़ना को भी पीछे छोड़ दिया. 4-5 घंटे नंगा करके उन्हें पीटते रहे. उनके अंग-प्रत्यंग को गर्म लोहे से दागा. सुरेश के गुप्तांग में लोहे की गर्म छड़ डाल दी. इन दोनों का अपराध यह था कि ये अपनी मजदूरी मांग रहे थे. सुरेश अभी भी बनारस के एक निजी अस्पताल में इलाज करा रहा है गांव के गरीब पिछड़ों के चंदे से और विजय अगले 5-6 महीने तक मजदूरी न कर पाने की शारीरिक हालत में है. 22 फरवरी को 2000-25000 लोगों ने कोचस में प्रदर्शन किया तब तक न तो कोई अभियुक्त गिरफ्तार हुआ था न ही पीड़ितों को कोई मेडिकल सहायता मिली थी. वहां भी भाजपा की गोद में खेल चुके अस्मितावादी नीतिश कुमार (ओबीसी) की सरकार है. गजब की अमानवीय असंवेदना का परिचय देते हुए 150-200 लोग (महिलाओं समेत) यह सर्कस देखते हुए मनोरंजित हो रहे थे. इस घटना ने गांव का वर्गीय ध्रुवीकरण कर दिया है. भूमिहीन दलित और ओबीसी एक साथ है और भूपति कुर्मी और राजपूत दूसरी तरफ. भगत सिंह ने सही कहा था कि जातिवाद और सांप्रदायिका का अंत वर्गचेतना से ही होगा. जातिवाद का एक जवाब इंकिलाब जिंदाबाद. ब्राह्मणवादी-नवब्राह्मणवादी मिलीभगत का लगातार पर्दाफास की जरूरत है. जय भीम-लाल सलाम.
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