जनता देशद्रोही हो गयी है
जुमले को वायदा समझ रही है
सम्राट से सवाल-जवाब कर रही है
धनकुबेरों के 'बुरे कर्ज' पर उंगली उठा रही है
राष्ट्रवाद की धज्जियां उड़ा रही है
जयजयकारे की बजाय शोर मचा रही है
विकास को श्मसान पहुंचाने के इल्जाम लगा रही है
यानि कि अनुशासनहीनता की हद पार कर गयी है
सरकार को नई जनता चुनना पड़ेगा
संसद को सेना के हवाले करना पड़ेगा
जैसा जियाउल हक ने किया था पाकिस्तान में
इस्लाम का टोटका पढ़ा
इस्लामिक जनतंत्र का मंत्र गढ़ा
झोंक दिया इतिहास को
जेहादी जहालत की खाई में
मरा तो वह भी बुरी मौत
मगर छोड़ गया तारीख़ के दामन पर
कई अमिट काले धब्बे.
कहा ही था परमपूज्यगुरू जी ने
साढ़े सात दशक से भी पहले
आयातित प्रणाली जनतंत्र
देता है समानता का 'अस्वाभाविक' मंत्र
लेकिन जनता हो गयी है इतनी देशद्रोही
समानता के सैद्धांतिक संभावना को
सच बनाना चाहती है
हदों की भी कोई हद होती है
खो चुकी है सरकार का विश्वास यह कृतघ्न जनता
करना ही पड़ेगा इसे बर्खास्त
और चुनना ही पड़ेगी नई जनता
इसके पहले कि जनता नई सरकार चुन ले
(यों ही कलम की एक और प्रातकालीन आवारगी)
(ईमि: 22.02.2017)
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