जब तक है दस्तूर सम्राटों का कायम
नहीं चलेगा सरकार बदलने से काम
चाहिए ग़र सचमुच का इंसाफ
बदलना पड़ेगा ज़र का निज़ाम
इसीलिए कहा जाता है इसे तताकथित जनतंत्र
खाता है जनता की जपता है धनकुबेरों का मंत्र
गायब है जैसे पब्लिक प्लेटो की रिपब्लिक से
वैसे ही जन गायब है इस पूंजीवादी जनतंत्र से
कहा था कार्ल मार्क्स ने कोई डेढ़ सौ साल पहले
शोषित-वंचितो को मिलता है हक़ तयशुदा वक्त सेे
उत्पीड़कों में से जिसे चाहे अपनी मर्जी से चुन ले
कार्ल मार्क्स ने ही कही थी यह भी बात
शासक वर्ग के विचार ही हैं शासक विचार
नहीं करता पूंजीवाद उत्पादन महज माल का
चलाता है कारखाने भी विचारों के उत्पादन का
पराधीन हैं भौतिक उत्पादन के श्रम के साधन से
निर्भर होते मालिक पर ही बौद्धिक उत्पादन के लिए
मुक्त करना है आवामी सोच वक्त की युगचेतना से
लैस करना होगा इसे खुद को जनवादी वर्गचेतना से
तब बन पाएगी आवाम का जनवादी संगठन
बनाएंगे दुनिया के मजदूर मानव-मुक्ति का चमन
तब तक जुमलेबाजों में से चुनने को अभिशप्त
चुनें उसे जो लूट और क्रूरता में हो थोड़ा कम
(ईमिः 22.02.2017)
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