मेरी नतिनी कभी तो चहकती चिड़िया सी लगती है
तो कभी चिंगारी समेटे हुए दावानल की संभावनाएं
भिंची मुट्ठियां लहराते हुए जब किलकारती है
ध्वनियों में छलकती हैं जंग-ए-आज़ादी का भावनाएं
अस्पष्टता की सकारात्मक व्यख्या ही वांछनीय है
भविष्य की कल्पना होती मुक्त वर्तमान विकटताओं से
(ईमि: 15.0.2017)
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