बड़े वसूक से लिखा था नीरो का मर्शिया
लेकिन अब तो अक्सर दिखाई देता है
हमेशा ही नीरो बजाता है बांसुरी
इतिहास का कोई भी रोम जब जलता है
नीरो का मर्शिया क्यों लिखता है शायर?
कौन था वह और कहां दिखाई देता है?
नीरो कौन था इसकी कहानी बताता हूं
कहां की बात क्या हर जगह दिखाई देता है
नीरो पहली शताब्दी में रोम का एक सम्राट था
शान-ओ-शौकत और क्रूरता का ऐतिहासिक नज़ीर
रहते थे नतमस्तक दरबारी, क़ाजी और सेनापति
वाह-वाही करते थे दानिशमंद आलिम और वजीर
बनाना चाहा उसने रोम में एक अभेद्य किला
सोचा उसने शहर खाली कराने का अचूक तरीका
वफादार कारिंदों ने कर दिया शहर आग के हवाले
खुद मना रहा था पिकनिक शहर से कुछ दूर
जलता रहा रोम छः दिन और सात रात
तमाम लोग और घर-बार जलकर खाक हो गए
धू-धू कर लजल रहा था जब रोम
कहते हैं नीरो तब चैन से बांसुरी बजा रहा था
हो गया जब शहर जल कर खाक़
नीरो चिग्घाड़ कर मातमी विलाप करने लगा
किया उसके विश्वस्त सूत्रों ने तुरंत उसको सूचित
इस जघन्य अपराध के दोषी अल्पसंख्यक ईशाई थे
किया नीरो ने सभी ईशाइयों की सजा-एमौत का ऐलान
मौत ऐसी कि फिर कोई विधर्मी ऐसे जुर्म की जुर्रत न करे
भर कर जानवर की खाल में फेंक दिया गया उन्हें कुत्तों के आगे
देखने को तमाशा-ए-मौत अपने उद्यान में उत्सव का आयोजन किया
मेहमानों में शामिल थे सारे हाकिम-हुकुम और जाने-माने लोग
सुरा-सुराही के परिवेश में वे नाच-गाने के साथ तमाशा देख रहे थे
घिरने लगा जब अंधेरा मौत के इस सर्कस में
जला कर बाकी ईशाइयों को रौशनी का इंतज़ाम किया
ज़ुल्म बढ़ता है तो बढ़ता ही जाता है
मगर मिट जाता है जब हद करता है
समझ के रोमवासी उसकी यह बर्बर चाल
आवाम ने मिलकर उसे सबक सिखाने का फैसला किया
ताकतवर हो कितना भी कोई भी तनाशाह
आवाम की एकता की ताकत अथाह होती है
देख उमड़ता जनसैलाब उड़ गए नीरो के होश
घबराकर अपने आप से उसने खुदकुशी कर लिया
लग रही होगी आपको यह परिचित कहानी
पैदा होते रहे हैं नीरो और करते रहे हैं खुदकुशी
बात नहीं है सिर्फ नीरो की
तमाशबीनों की भी कमीनगी कम नहीं होती
(कलम की लंबी आवारगी काफी वक़्त खा गई)
(ईमि: 20.02.2017)
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