हा हा. वामपंथियों की गलतियों पर सबसे ज्यादा वामपंथी ही लिखे हैं. कम्युनिस्ट पार्टी ने मार्क्सवाद सामाज को समझने का विज्ञान की जगह मॉडल मान लिया. जन्माधारित सामाजिक विभाजन यूरोप में नवजागरण में खत्म होगया था इसीलिए मार्क्स ने लिखा कि पूंजीवाद ने अंतर्विरोध को सरल कर दिया और समाज को पूंजीपति ऐर सर्वहारा वर्गों में बांट दिया. भारत में बुर्जुआ डेमोक्रेटिक आंदोलन हुआ ही नहीं. कबीर के साथ शुरू हुआ सामाजिक-आध्यात्मिक समानता का नवजागगण अपनी तार्किक परिणति तक न पहुंच सका. इसलिए जनमाधारित सामाजिक विभाजन का मुद्दा सर्वोपरि होना चाहिए था. यदि ऐसा होता तो शायद अंबेडकर कम्युनिस्ट नेता होते. जातीय उत्पीड़न के विरुद्ध कम्युनिस्ट ही लड़े, लेकिन इसे प्रमुख मुद्दा न बना सके. देर आए दुरुस्त आए. जयभीम-लाल सलाम का नारा दिया, जिसे ठोस रूप देने की जरूरत है. इस मुद्दे को मैं फरवरी 2016 के बाद कई लेखों में उठाया है. भारत में शासक जातियां ही शासक वर्ग रही हैं. मैं अपने लेखों के कुछ लिंक दे रहा हूं. सीपीआई-सीपीयम ने कब से कम्युनिस्ट होना बंद कर दिया.
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