Friday, September 13, 2013

तोड़ दो मर्दवाद का दुर्गद्वार

तोड़ दो सदियों पुराने मर्दवाद का दुर्गद्वार
नहीं पड़ेगी डाइनामाइट की जरूरत
हथौड़े का वार काफी है
 इसकी जर्जर दीवारों के लिये
मसक दो सलाखें इसके कैदखाने की
जला दो सारी वर्जनायें और दिशा-निर्देश
देते हों जो लाचारी-ओ-बेखुदी के संदेश
बनाओ ताकत चेहरे पर लिखी दर्द की कहानी को
लड़ो यक़ीन के साथ कि जीतना ही है यह जंग
मत सहो अब और इस अफसोस के साथ
कि सहते क्यों रहे अब तक
नहीं है विकल्प कोई लड़ने का
क्योंकि लड़े बिना कुछ नहीं मिलता
हम लड़ेंगे सारे जोर-ज़ुल्म के बावजूद
लड़ेंगे आज़ादी के एक-एक इंच के लिये
हम लड़ेंगे और जीतेंगे
क्योंकि हम लड़ेंगे एक आज़ाद जमाने के लिये
अमन-ओ-चैन के अफ्साने के लिये
[ईमि/13.09.20-13]

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