विभिन्नता में वास्तविक एकता समता भाव से ही संभव है, असमानता में एकता नहीं, श्रेणीबद्धता होती है और संबंधों का सुख एकता में है, श्रेणीबद्धता में सुख नहीं, सुख की खुशफहमी होती है. असमानता के सारे पैरोकार विभिन्नता को असनानता के रूप में परिभाषित करते हैं और फिर वे उसी परिभाषा से,गोल-मटोल तर्क के सहारे, असमानता को प्रमाणित करते हैं. "हाथ की पाँचों उंगलियां बराबर नहीं होती " का घिसा-पिटा कथन एसी तरह का गोल-मटोल कुतर्क है. आकार की मात्रात्मक असमानता से उनका गुणात्मक महत्व नहीं तय होता.अंगूठा आकार में अपेक्षाकृत छोटा होता है, लेकिन द्रोणाचार्य को एकलव्य का अंगूठा ही सबसे खतरनाक लगा था.
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